गुना में महिला ने पुलिस अधीक्षक को दिया आवेदन — खुलेआम हमला, 7 लोगों के सिर फटे, पुलिस ने मामूली धाराओं में निपटा दी एफआईआर!
गुना। शहर में बढ़ते अपराधों के बीच अब आम जनता खुद को असुरक्षित महसूस कर रही है, और जब पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ जाए, तो यह स्थिति और भी चिंताजनक बन जाती है। हरिजन कॉलोनी, बी.जी. रोड निवासी अनीता रजक ने पुलिस अधीक्षक गुना को एक गंभीर शिकायती आवेदन सौंपा है, जिसमें उन्होंने न केवल पड़ोसियों द्वारा हुए जानलेवा हमले की बात कही है, बल्कि गुना पुलिस की लापरवाही और संदिग्ध कार्यप्रणाली को भी उजागर किया है।
रात में गाली-गलौच से शुरू हुआ विवाद, सुबह बन गया जानलेवा हमला
अनीता रजक के अनुसार, 25 मई की रात उनके पड़ोसी सोनू रजक और उसके भतीजे ने उनके घर के बाहर गाली-गलौच की। बात को रात में ही शांत कर दिया गया, लेकिन अगले दिन सुबह जब वे बात समझाने की कोशिश कर रहे थे, तभी फिर गाली-गलौच शुरू हो गई। जब अनीता अपने परिजनों के साथ कोतवाली जाने लगे, तो आरोपियों ने धमकी दी कि "आधा घंटा रुक जाओ, जान से खत्म कर देंगे।"
पुलिस ने गंभीर धमकी को नजरअंदाज कर कराया समझौता!
अनीता रजक का आरोप है कि पुलिस को उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई है, इसके बावजूद पुलिस ने जबरन राजीनामा करवा लिया और उन्हें घर भेज दिया।
खूनी हमला: कुल्हाड़ी, चाकू, डंडे और ईंटों से हमला — 7 घायल, सिर फटे, पैर टूटे
घर लौटने के कुछ ही समय बाद अचानक करीब 15 से ज्यादा लोग हथियारों से लैस होकर उनके घर पर टूट पड़े। हमलावरों में सोनू, संजू, दीपक, रवि, अर्जुन, नितिन, कल्ली, रचना और कई अनजान लोग शामिल थे। हमला इतना भयंकर था कि सात लोगों के सिर फट गए और दो के पैर टूट गए। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां सिर पर 10-15 टांके लगे।
एफआईआर में साधारण धाराएं, अस्पताल में भी नहीं आई पुलिस
पीड़ितों का आरोप है कि पुलिस ने इतनी गंभीर घटना के बाद भी बेहद हल्की धाराएं — धारा 296/115/351/3 — लगाई और गंभीर हमले को मामूली झगड़ा बना दिया। इतना ही नहीं, अस्पताल में भर्ती पीड़ितों से बिना पूरा विवरण लिए केवल एक जगह साइन करवा कर एफआईआर लिख दी गई। 3 दिन तक कोई भी पुलिस अधिकारी अस्पताल नहीं पहुंचा।
शिकायतकर्ता की मांग: हो निष्पक्ष जांच, सख्त कार्रवाई
पीड़िता अनीता रजक ने पुलिस अधीक्षक से मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई हो। साथ ही, कोतवाली पुलिस की भूमिका की भी जांच हो कि आखिर क्यों इतने गंभीर हमले को जानबूझकर सामान्य बनाया गया।
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